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March 7, 2020

Place Of Women In Manusmriti

स्त्रियों को प्राथमिकता –

स्त्रियों की प्राथमिकता ( लेडिज फर्स्ट )  के जनक महर्षि मनु ही हैं |

२.१३८-  स्त्री, रोगी, भारवाहक, अधिक आयुवाले, विद्यार्थी, वर और राजा को पहले रास्ता देना चाहिए |

३.११४-  नवविवाहिताओं, अल्पवयीन कन्याओं, रोगी और गर्भिणी स्त्रियों को, आए हुए अतिथियों से भी पहले भोजन कराएं।

मनुस्मृति ३.५६ –

जिस समाज या परिवार में स्त्रियों का आदर – सम्मान होता है, वहां देवता अर्थात् दिव्यगुण और सुख़- समृद्धि निवास करते हैं और जहां इनका आदर – सम्मान नहीं होता, वहां अनादर करने वालों के सभी काम निष्फल हो जाते हैं भले ही वे कितना हीश्रेष्ट कर्म कर लें, उन्हें अत्यंत दुखों का सामना करना पड़ता है।

परिवार में स्त्रियों का महत्त्व –

३.५५ – पिता, भाई, पति या देवर को अपनी कन्या, बहन, स्त्री या भाभी को हमेशा यथायोग्य मधुर- भाषण, भोजन, वस्त्र, आभूषण आदि से प्रसन्न रखना चाहिए और उन्हें किसी भी प्रकार का क्लेश नहीं पहुंचने देना चाहिए |

३.५७ – जिसकुल में स्त्रियां अपने पति के गलत आचरण, अत्याचार या व्यभिचार आदि दोषोंसे पीड़ित रहती हैं, वह कुल शीघ्र नाश को प्राप्त हो जाता है और जिस कुल मेंस्त्रीजन पुरुषों के उत्तम आचरणों से प्रसन्न रहती हैं, वह कुल सर्वदाबढ़ता रहता है |

३.५८-अनादर के कारण जो स्त्रियां पीड़ित और दुखी: होकर पति, माता-पिता, भाई, देवर आदि को शाप देती हैं या कोसती हैं – वह परिवार ऐसे नष्ट हो जाता हैजैसे पूरे परिवार को विष देकर मारने से, एक बार में ही सब के सब मर जातेहैं |

३.५९ – ऐश्वर्य की कामना करने वाले मनुष्यों को हमेशा सत्कार और उत्सव के समय में स्त्रियोंका आभूषण,वस्त्र, और भोजन आदि से सम्मान करना चाहिए |

३.६२- जो पुरुष, अपनी पत्नी को प्रसन्न नहीं रखता, उसका पूरा परिवार ही अप्रसन्न और शोकग्रस्त रहता है | और यदि पत्नी प्रसन्न है तो सारा  परिवार खुशहाल रहता है |

९.२६ – संतान को जन्म देकर घर काभाग्योदय करने वाली स्त्रियां सम्मान के योग्य और घर को प्रकाशित करनेवाली होती हैं | शोभा, लक्ष्मी और स्त्री में कोई अंतर नहीं है | यहां महर्षि मनु उन्हें घर की लक्ष्मी कहते हैं |

९.२८- स्त्री सभी प्रकार केसुखों को देने वाली हैं | चाहे संतान हो, उत्तम परोपकारी कार्य हो या विवाहया फ़िर बड़ों की सेवा – यह सभी सुख़ स्त्रियों के ही आधीन हैं | स्त्री कभी मां के रूप में, कभी पत्नी और कभी अध्यात्मिक कार्यों की सहयोगी के रूप में जीवन को सुखद बनाती है |  इस का मतलब है कि स्त्री की सहभागिता किसी भी धार्मिक और अध्यात्मिक कार्यों के लिए अति आवश्यक है |

९.९६ – पुरुष और स्त्री एक-दूसरेके बिना अपूर्ण हैं, अत: साधारण से साधारण धर्मकार्य का अनुष्ठान भी पति -पत्नी दोनों को मिलकर करना चाहिए |

४. १८० – एक समझदार व्यक्ति को परिवार के सदस्यों –  माता, पुत्री और पत्नी आदि के साथ बहस या झगडा नहीं करना चाहिए |

९ .४ – अपनी कन्या का योग्य वर से विवाह न करने वाला पिता, पत्नी की उचित आवश्यकताओं को पूरा न करने वालापति और विधवा माता की देखभाल न करने वाला पुत्र – निंदनीय होते हैं |

बहुविवाह पाप है –

९.१०१ – पति और पत्नी दोनों आजीवन साथ रहें, व्यभिचार से बचें, संक्षेप में यही सभी मानवों का धर्म है |

अत: धर्म  के इस मूल तत्व कीअवहेलना कर के जो समुदाय – बहुविवाह, अस्थायी विवाह और कामुकता के लिये गुलामी इत्यादि को ज़ायज ठहराने वाले हैं – वे अपने आप ही पतन और विनाश कीओर जा रहे हैं |

स्त्रियों  के स्वाधिकार  –

९ .११ – धन की संभाल और उसके व्यय की जिम्मेदारी, घर और घर के पदार्थों की शुद्धि, धर्म और अध्यात्म केअनुष्ठान आदि, भोजन पकाना और घर की पूरी सार -संभाल में स्त्री को पूर्ण स्वायत्ता मिलनी चाहिए और यह सभी कार्य उसी केमार्गदर्शन में होने चाहिए |

इस श्लोक से यह भ्रांत धारणा निर्मूल हो जाती है कि स्त्रियां वैदिक कर्मकांड का अधिकार नहीं रखतीं | इसके विपरीत उन्हें इन अनुष्ठानों में अग्रणी रखा गया है और जो लोगस्त्रियों के इन अधिकारों का हनन करते हैं –  वे वेद, मनुस्मृति और पूरीमानवता के ख़िलाफ़ हैं |

९.१२ – स्त्रियां आत्म नियंत्रणसे ही बुराइयों से बच सकती हैं, क्योंकि विश्वसनीय पुरुषों ( पिता, पति, पुत्र आदि) द्वारा घर में रोकी गई अर्थात् निगरानी में रखी हुई स्त्रियां भी असुरक्षित हैं ( बुराइयों से नहीं बच सकती) | जो स्त्रियां अपनी रक्षा स्वयं अपने सामर्थ्य और आत्मबल से कर सकती हैं, वस्तुत: वही सुरक्षित रहतीहैं |

जो लोग स्त्रियों की सुरक्षा के नाम पर उन्हें घर में ही रखना पसंद करते हैं, उनका ऐसा सोचना व्यर्थ है | इसके बजाय स्त्रियों को उचित प्रशिक्षण तथा सही मार्गदर्शन मिलना चाहिएताकि वे अपना बचाव स्वयं कर सकें और गलत रास्ते पर भी न जाएं | स्त्रियोंको चारदिवारी में कैद रखना महर्षि मनु के पूर्णत: विपरीत है |

स्त्रियों की सुरक्षा –

९ .६ – एक दुर्बल पति को भी अपनी पत्नी की रक्षा का यत्न करना चाहिए |

९ .५- स्त्रियां चरित्रभ्रष्टता से बचें क्योंकि अगर स्त्रियां आचरणहीन हो जाएंगी तो सम्पूर्ण समाज ही विनष्ट हो जाता है |

५ .१४९- स्त्री हमेशा स्वयं को सुरक्षित रखे | स्त्री की हिफ़ाजत – पिता, पति और पुत्र का दायित्व है |

इस का मतलब यह नहीं है कि मनु स्त्री को बंधन में रखना चाहते हैं | श्लोक ९.१२ में स्त्रियों कीस्वतंत्रता के लिए उनके विचार स्पष्ट हैं | वे यहां स्त्रियों की सामाजिक सुरक्षा की बात कर रहे हैं | क्योंकि जो समाज, अपनी स्त्रियों की रक्षा विकृत मनोवृत्तियों के लोगों से नहीं कर सकता, वह स्वयं भी सुरक्षित नहींरहता |

इसीलिए जब पश्चिम और मध्य एशिया के बर्बर आक्रमणकारियों ने हम परआक्रमण किए तब हमारे शूरवीरों ने मां- बहनों के सम्मान के लिए प्राण तक न्यौछावर कर दिए ! महाराणा प्रताप के शौर्य और आल्हा- उदल के बलिदान की कथाएं आज भी हमें गर्व से भर देती हैं |

हमारी संस्कृति के इस महान इतिहासके बावजूद भी हम ने आज स्त्रियों को या तो घर में कैद कर रखा है या उन्हेंभोग- विलास की वस्तु मान कर उनका व्यापारीकरण कर रहे हैं | अगर हम स्त्रियों के सम्मान की रक्षा करने की बजाय उनके विश्वास को ऐसे ही आहत करते रहे तो हमारा विनाश भी निश्चित ही है |

विवाह –

९.८९ – चाहे आजीवन कन्या पिता के घर में बिना विवाह के बैठी भी रहे परंतु गुणहीन, अयोग्य, दुष्ट पुरुष के साथ विवाह कभी न करे |

९.९० – ९१- विवाह योग्य आयु होनेके उपरांत कन्या अपने सदृश्य पति को स्वयं चुन सकती है | यदि उसके माता -पिता योग्य वर के चुनाव में असफल हो जाते हैं तो उसे अपना पति स्वयं चुन लेने का अधिकार है |

भारतवर्ष में तो प्राचीन काल में स्वयंवर की प्रथा भी रही है | अत: यह धारणा कि माता – पिता ही कन्या के लिए वर का चुनाव करें, मनु के विपरीत है | महर्षि मनु के अनुसार वर के चुनाव में माता- पिता को कन्या की सहायता करनी चाहिए न कि अपना निर्णय उसपर थोपना चाहिए, जैसा कि आजकल चलन है |

संपत्ति में अधिकार-

९.१३० –  पुत्र के ही समान कन्या है, उस पुत्री के रहते हुए कोई दूसरा उसकी संपत्ति के अधिकार को कैसे छीन सकता है ?

९.१३१ – माता की निजी संपत्ति पर केवल उसकी कन्या का ही अधिकार है |

मनुके अनुसार पिता की संपत्ति में तो कन्या का अधिकार पुत्र के बराबर है ही परंतु माता की संपत्ति पर एकमात्र कन्या का ही अधिकार है | महर्षि मनुकन्या के लिए यह विशेष अधिकार इसलिए देते हैं ताकि वह किसी की दया पर नरहे, वो उसे स्वामिनी बनाना चाहते हैं, याचक नहीं | क्योंकि एक समृद्ध औरखुशहाल समाज की नींव स्त्रियों के स्वाभिमान और उनकी प्रसन्नता पर टिकी हुईहै |

९.२१२ – २१३ – यदि किसी व्यक्ति के रिश्तेदार या पत्नी न हो तो उसकी संपत्ति को भाई – बहनों में समान रूप से बांट देना चाहिए | यदि बड़ा भाई, छोटे भाई – बहनों को उनका उचित भाग न दे तो वह कानूनन दण्डनीय है |

स्त्रियों की सुरक्षा को और अधिक सुनिश्चित करते हुए, मनु स्त्री की संपत्ति को अपने कब्जे में लेने वाले, चाहें उसके अपने ही क्यों न हों, उनके लिए भी कठोर दण्ड का प्रावधान करतेहैं |

८.२८- २९ –  अकेली स्त्री जिसकी संतान न हो या उसके परिवार में कोई पुरुष न बचा हो या विधवा हो या जिसका पति विदेश में रहता हो या जो स्त्री बीमार हो तो ऐसे स्त्री की सुरक्षा का दायित्व शासन का है | और यदि उसकी संपत्ति को उसके रिश्तेदार या मित्र चुरा लें तो शासन उन्हें कठोर दण्ड देकर, उसे उसकी संपत्ति वापस दिलाए |

दहेज़ का निषेध –

३.५२ – जो वर के पिता, भाई, रिश्तेदार आदि लोभवश, कन्या या कन्या पक्ष से धन, संपत्ति, वाहन या वस्त्रों को लेकर उपभोग करके जीते हैं वे महा नीच लोग हैं |

इस तरह, मनुस्मृति विवाह में किसी भी प्रकार के लेन- देन का पूर्णत: निषेध करती है ताकि किसी में लालचकी भावना न रहे और स्त्री के धन को कोई लेने की हिम्मत न करे |

इस से आगेवाला श्लोक तो कहता है कि विवाह में किसी वस्तु का अल्प – सा भी लेन- देनबेचना और खरीदना ही होता है जो कि श्रेष्ठ विवाह के आदर्शों के विपरीत है | यहां तक कि मनुस्मृति तो दहेज़ सहित विवाह को ‘दानवी‘ या ‘आसुरी‘ विवाहकहती है |

स्त्रियों को पीड़ित करने पर अत्यंत कठोर दण्ड –

८.३२३- स्त्रियों का अपहरण करनेवालों को प्राण दण्ड देना चाहिए |

९.२३२-  स्त्रियों, बच्चों और सदाचारी विद्वानों की हत्या करने वाले को अत्यंत कठोर दण्ड देना चाहिए |

८.३५२- स्त्रियों पर बलात्कार करने वाले, उन्हें उत्पीडित करने वाले या व्यभिचार में प्रवृत्त करने वालेको आतंकित करने वाले भयानक दण्ड दें ताकि कोई दूसरा इस विचार से भी कांपजाए |

इसी संदर्भ में एक सत्र न्यायाधीश ने बलात्कार के अत्यधिक बढ़ते हुए मामलों को देखते हुए कहा है किइस घृणित अपराध के लिए अपराधी को नामर्द बना देना ही सही सजा लगती है।

Link: https://reclaimvedas.blogspot.com/2020/03/place-of-women-in-manusmriti.html 

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